भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड, जो अपनी नैसर्गिक सुंदरता और धार्मिक पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, वहीं गंगा, यमुना जैसी जीवनदायिनी नदियों का उद्गम भी यहीं से होता है। इनके अलावा हिन्दू मान्यताओं में मोक्षदायिनी नदी कही जाने वाली ‘सरयू’ (Saryu River) का उद्गम स्थल भी उत्तराखंड के सुदूरवर्ती पहाड़ों में ही है। मान्यतानुसार इस नदी में स्नान मात्र से ही सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त होता है। आईये पढ़ते हैं सरयू नदी के उद्गम और उसके निकट प्रमुख तीर्थ स्थलों के बारे में –
सरमूल
सरयू मूल अर्थात् सरयू के उद्गम स्थल को ही ‘सरमूल’ कहते हैं। सरमूल, एक खड़ी पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ पर संयोग या देवी कृपा से ही पहुँचा जा सकता है। सरमूल से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी तय कर सरयू का ग्राम झूनी के नजदीक में ‘सौधारा’ में आगमन होता है। सौधारा में सरमूल से आने वाली सरयू, सौधारा एवं दुग्ध धारा (तीन धाराओं) का संगम है। यहीं पर सरयू मैया, गुरु गोरखनाथ एवं शिव व पार्वती का मन्दिर है। लेकिन कुछ श्रद्धालुओं का मानना है कि यह गुरु गोरखनाथ नहीं बल्कि श्री वशिष्ठ जी का मन्दिर है, जिसे वर्तमान में गुरु गोरखनाथ जी के रूप में स्थानीय लोगों के द्वारा पूजा जाता है।
भद्रतुंगा
सौधारा से करीब पाँच किलोमीटर कपकोट की तरफ सरयू तट पर भद्रतुंगा नामक पवित्र तीर्थ स्थित है। ग्रामीणों के अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले इस स्थान पर भद्र नामक ऋषि तपस्या करते थे। इसीलिए इस स्थान को भद्रतुंगा नाम से जाना जाता है, जो कि ग्राम बैछम में स्थित है। भद्रतुंगा में हनुमान जी, सरयू मैया, शिवजी व भैरव जी का मन्दिर है। सैकड़ों वर्षों से कपकोट, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चमोली, हल्द्वानी व अन्य कई राज्यों से भद्रतुंगा में स्नान, जनेऊ संस्कार एवं पितृ कार्य के लिए श्रद्वालु पहुँचते रहे हैं।
तप्तकुण्ड
कौतेला की पहाड़ी के निचले भाग में ‘सरमूल‘ एवं ‘सौधारा’ के बीच में वशिष्ठ गुफा स्थित है। जहाँ पर आज भी पत्थर में पैर की अंगुलियों के निशान देखे जा सकते हैं। बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील मुख्यालय से करीब नौ किमी. की दूरी पर सलिंग उडियार में तप्तकुण्ड की भी अपनी विशिष्ट महिमा है। यहाँ पर शिवालय व हनुमान जी का मन्दिर है। जैसे कि ‘तप्तकुण्ड’ शब्द से ही स्पष्ट है कि यहाँ पर गरम पानी का कुण्ड है। प्रतिवर्ष सैकड़ों की तादात में दूर-दूर से लोग इस पवित्र तीर्थस्थल पर सरयू खान व जनेऊ संस्कार हेतु पहुंचते हैं। सौधारा, भद्रतुंगा एवं तप्तकुण्ड में वैशाखी पूर्णिमा एवं शिवरात्रि को भव्य मेले का आयोजन होता है तथा श्रद्धालुगण दूर-दूर से खान करने के लिए अपनी सुविधा व समय के अनुसार इन पवित्र तीर्थ स्थलों पर पहुंचते हैं।
इस प्रकार माँ सरयू उत्तराखण्ड के जनपद बागेश्वर के तहसील कपकोट के मूल से निकलकर सौधारा, भद्रतुंगा, तप्तकुण्ड, कपकोट, बागेश्वर, सेराघाट, रामेश्वर, पंचेश्वर, चम्पावत, टनकपुर चाँदनी (नेपाल), खीरी, शारदानगर, अयोध्या, बलिया से होते हुए सरयू छपरा (बिहार) तक भारत के जनजन को दर्शन देकर उनके पापों को हरती है।
कैसे पहुंचें
जनपद मुख्यालय बागेश्वर से कपकोट की दूरी 24 किमी. है। भराड़ी व कपकोट में रहने व खाने के लिए अच्छे होटल-मोटल आसानी से मिल जाते हैं। कपकोट से तप्तकुण्ड की दूरी 9 किमी., पतियासार 22 किमी., भद्रतुंगा 24 किमी., झूनी 32 किमी., सौधारा 36 किमी. की दूरी पर स्थित है। अन्तिम गाँव झूनी तक सड़क की सुविधा उपलब्ध है। झूनी से सौधारा की दूरी करीब 4 किमी. है। जहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है। जबकि सरमूल जाने के लिए झूनी से कम से कम दो दिन तथा देवी कुण्ड जाने के लिए तीन दिन का समय लगता है। सरमूल एवं देवी कुण्ड जाने का रास्ता अत्यन्त कठिन है। सरमूल, सौधारा, भद्रतुंगा विकास एवं सरयू संरक्षण समिति तथा उत्तराखण्ड सरकार इन पवित्र तीर्थ स्थलों के विकास एवं प्रचार-प्रसार के लिए निरन्तर प्रयासरत है