भारत का उत्तराखंड राज्य पूरे विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात है। प्रमुख चार धाम, जागनाथ और बागनाथ धरती, गंगा, यमुना, सरयू, काली और गोरी जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम एवं हिमालय की विशाल पर्वतमालाएं इसी प्रदेश में हैं। यहाँ रहने वाले लोगों ने इस भूमि को और भी महत्ता दी है। उनके धार्मिक रीति-रिवाज और ईश्वर के प्रति अपार आस्था और विश्वास देश के अन्य प्रांतों से कहीं अधिक हैं। इसी आस्था, विश्वास और रीति का एक उदाहरण है ‘जागर’ जिसे देवताओं का पवित्र आह्वान कहा जाता है। आईये जानते हैं उत्तराखंड में लगने वाले “जागर” Jagar के बारे में।
जागर का अर्थ
‘जागर’ उत्तराखंड की पारम्परिक पूजा पद्धतियों में से एक है। जागर का मतलब होता है ‘जगाना’। जागर के माध्यम से यहाँ के लोग अपने ईष्ट देवताओं का आह्वान करते हैं। उत्तराखण्ड तथा नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रों में कुछ ग्राम देवताओं की पूजा की जाती है, जैसे गंगनाथ, गोलू, भनरिया, भैरव, कालसन आदि। बहुत देवताओं को स्थानीय भाषा में ‘ग्राम देवता’ कहा जाता है। ग्राम देवता का अर्थ ‘गांव का देवता’ है। अत: उत्तराखण्ड और डोटी के लोग देवताओं को जगाने हेतु जागर लगाते हैं।
जागर दो तरह के होते हैं
जागर मन्दिर अथवा घर में कहीं भी किया जाता है। जागर “बाइसी” तथा “चौरास” दो प्रकार के होते हैं। बाइसी बाईस दिनों तक जागर किया जाता है। कहीं-कहीं दो दिन का जागर को भी बाईसी कहा जाता है। चौरास मुख्यतया चौदह दिन तक चलता है। लेकिन कहीं-कहीं चौरास को चार दिनों में ही समाप्त किया जाता है।
जागर के तीन मुख्य प्रतिभागी
- जागर में ‘जगरिया’ मुख्य पात्र होता है। जो रामायण, महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों की कहानियों के साथ ही जिस देवता को जगाया जाना है उस देवता के चरित्र को स्थानीय भाषा में वर्णन करता है। जगरिया हुड्का (हुडुक), ढोल तथा दमाउ बजाते हुए कहानी लगाता है। जगरिया के साथ में दो तीन लोग और रहते हैं, जो उसके साथ स्वर मिलाते हैं और कांसे की थाली को पतले लड़के से बने सोटों से बजाते हैं।
- जागर का दूसरा पात्र होता है “डंगरिया” इनके शरीर में देवता अवतरित होते हैं। जगरिया के जगाने पर डंगरिया कांपता है और जगरिया के गीतों की ताल में नाचता है। डंगरिया के आगे चावल के दाने रखे जाते हैं, जिसे हाथ में लेकर डंगरिया और लोगों से पूछा गया प्रश्न का उत्तर देता है। मान्यता है आदमी का भूत- भविष्य तथा वर्तमान सटिक बताते हैं।
- जागर का तीसरा पात्र होता है स्योकार (सेवाकार) स्योकार उसे कहा जाता है जो अपने घर अथवा मन्दिर में जागर का आयोजन कराता है और जगरिया, डंगरिया और अन्य लोगों के लिए भोजन पानी का पूरी व्यवस्था करता है। जागर कराने से स्योकार को इच्छित फल प्राप्ति का विश्वास किया जाता है।
जागर के लिये धूणी
जागर के लिये धूणी बनाना भी आवश्यक है, इसे बनाने के लिये लोग नहा-धोकर, पंडित जी के अगुवई में शुद्ध होकर एक शुद्ध स्थान का चयन करते हैं तथा वहां पर गौ-दान किया जाता है फिर वहां पर गोलाकार भाग में थोड़ी सी खुदाई की जाती है और वहां पर लकड़ियां रखी जाती हैं। लकड़ियों के चारों ओर गाय के गोबर और दीमक वाली मिट्टी ( यदि उपलब्ध न हो तो शुद्ध स्थान की लाल मिट्टी) से यहां पर लीपा जाता है। जिसमें जागर लगाने से पहले स्योंकार द्वारा दीप जलाया जाता है, फिर शंखनाद कर धुणी को प्रज्जवलित किया जाता है। इस धूणी में किसी भी अशुद्ध व्यक्ति के जाने और जूता-चप्पल लेकर जाने का निषेध होता है।
आठ चरणों में पूर्ण होता है जागर
जागर का मुख्य कार्य करता है जगरिया और वह जागर को आठ भागों में पूरा करता है।
- प्रथम चरण – सांझवाली गायन (संध्या वंदन)
- दूसरा चरण- बिरत्वाई गायन (देवता की बिरुदावली गायन)
- तीसरा चरण- औसाण (देवता के नृत्य करते समय का गायन व वादन)
- चौथा चरण- हरिद्वार में गुरु की आरती करना
- पांचवा चरण- खाक रमाना
- छठा चरण- दाणी का विचार करवाना
- सातवां चरण- आशीर्वाद दिलाना, संकट हरण का उपाय बताना, विघ्न-बाधाओं को मिटाना
- आठवां चरण- देवता को अपने निवास स्थान कैलाश पर्वत और हिमालय को प्रस्थान कराना
जागर के प्रथम चरण में जगरिया हुड़्के या ढोल-दमाऊं के वादन के साथ सांझवाली का वर्णन करता है, इस गायन में जगरिया सभी देवी-देवताओं का नाम, उनके निवास स्थानों का नाम और संध्या के समय सम्पूर्ण प्रकृति एवं दैवी कार्यों के स्वतः प्राकृतिक रुप से संचालन का वर्णन करता है।
जै गुरु-जै गुरु
माता पिता गुरु देवत
तब तुमरो नाम छू इजाऽऽऽऽऽऽ
यो रुमनी-झूमनी संध्या का बखत में॥
तै बखत का बीच में,
संध्या जो झुलि रै।
बरम का बरम लोक में, बिष्णु का बिष्णु लोक में,
राम की अजुध्या में, कृष्ण की द्वारिका में,
यो संध्या जो झुलि रै,
शंभु का कैलाश में,
ऊंचा हिमाल, गैला पताल में,
डोटी गढ़ भगालिंग में
यह थी उत्तराखंड की जागर परम्परा के बारे में कुछ सामान्य जानकारी। पढ़ने, वीडियो देखने में यह परम्परा नए व्यक्ति को जरूर अलग सा महसूस हो सकता है। लेकिन देवताओं की इस धरती में आस्था और विश्वास के भरे लोगों के लिए यह जीवन के महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। जय देवभूमि।