Phool dei Festival: चैत्र माह कि पहली तिथि यानि दिनांक 14 मार्च 2025 से पहाड़ में फूल संगरांद यानि बच्चों का प्रिय त्यौहार ‘फूलदेई’ शुरू हो रहा है। आप सभी को लोक पर्व फूलदेई की हार्दिक शुभकामनायें। आप सभी अपने बच्चों को पहाड़ के इस त्यौहार कि जानकारी अवश्य दे और इसका आयोजन भी करें।
फूलदेई में अल सुबह नन्हे मुन्ने बच्चे घर घर जाकर मंगलकामना के ऋतु गीत गाते हैं। घोघा माता की डोली कंधे में रखकर सब को सुफल का आशीष देते है। घोघा माता को इस त्यौहार की आराध्य देवी माना जाता है जिसकी पूजा प्रतिष्ठा केवल बच्चे ही करते है। फागुन के अन्तिम दिन फूलों की देवी घोघा माता की डोली तैयार करने के लिए पय्याँ यानि पदम वृक्ष न्यूता जाता है। पय्याँ के मोटे तने पर घोघा डोली उकेरी जाती है। हल्दी से
रंग कर शीर्ष भाग पर मुखाकृति बनायी जाती, छोटी छोटी आखें नाक उकेरने के उपरांत रेशमी वस्त्र पहनाये जाते है, मनौतियों की सुफल कामना हेतु छत्र चढ़ाये जाते हैं, इस तरह से माँ का श्रृंगार पूरा होता है।
कौन है घोघा माता
पहाड़ के फूलदेई त्यौहार की आराध्य देवी “घोघा ” की उत्पति कब और कैसे हुई, इसका वर्णन बहुत खोजने पर भी नहीं मिल पाया, लोक परम्पराओं में घोघा माता को फूलों की देवी, बंसत की देवी और प्रकृति की बेटी माना जाता है। कहते है देवी का अवतरण फूलों के साथ धरती पर हुआ। इसीलिये फूलों के साथ उसे पूजा नचाया जाता है।
लोक परम्पराओं की जानकार 82 वर्षीय दादी श्रीमती सुदामा देवी बेंजवाल के अनुसार जिस प्रकार नंदा प्रकृति है उसी प्रकार घोघा भी प्रकृति है। दोनों मानस बहिनें हैं। नंदा 12 साल बाद लोक में प्रकट होती है तो घोघा 12 महीने बाद। दोनों को भेंट पूजा देकर स्वागत पूजा जाता है। नंदा के प्रति जितना प्रेम पहाड़ में है उतना ही घोघा के प्रति भी अंतर इतना है कि नंदा बेटी के रूप में पूजी न्यूती जाती है तो घोघा माँ के रूप में। घोघा माता की पूजा भी अत्यंत साधारण और अनुष्ठानिक मन्त्रों से परे है। हर साल चैत्र संक्रान्ति के दिन घोघा की डोली को कंधे पर रखकर नन्हे मुन्ने बच्चे सुबह-सुबह घर-घर जाकर फूल डालते है। यह क्रम आठवें दिन और कहीं-कहीं एक माह तक चलता है। जिसकी समाप्ति के बाद देवी को पुनः प्रकृति के साथ रख कर विदा कर दिया जाता है। पहाड़ के लगभग प्रत्येक गाव में यह पूजी जाती है। इतनी व्यापकता के बाद भी इसके मंदिर कहीं नहीं मिलते।
वाक बोलते है घोघा पुजारी
गढ़वाल की तल्ला नागपुर पट्टी के कई गांवों में घोघा माता के छोटे छोटे पुजारी “वाक” ( भविष्यवाणी ) भी करते है। चोपता के पास जाखणी गाँव में घोघा डोली पर चाँदी का छत्र और मुखाकृति भी है। जिसको लोग मनौती स्वरूप छत्र भेंट करते हैं।
पुत्रदायिनी है घोघा माता
बच्चों की प्रिय घोघा माता का स्वरूप अत्यंत मनोहारी है, उसके भावों में ही बालपन का आशीष है। उसकी पूजा प्रतिष्ठा सब बच्चे ही करते है, और वह उनकी इस अबोध पूजा में प्रसन्न होती है। देवी के इस रूप का महात्म्य समझने और महसूस करने के लिए हृदय को इसी अबोध भाव में एकाकार करना आवश्यक है और इसी भाव में श्रद्धा पूर्वक घोघा माता को छत्र अर्पित किया जाये तो पुत्र प्राप्ति होती है।
आप सभी को इस पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई।
कुमाऊँ में कैसे मनाते हैं फूलदेई, इसके बारे में पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ – प्रकृति का उत्सव है फूलदेई।
लेख : श्री दीपक बेंजवाल